पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून का विरोध.
नई दिल्ली:
पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून बना है. इस कानून के तहत किसी को यदि दोषी पाया जाता है तो उसे मौत की सजा दी जा सकती है. आजकल वक्त सोशल मीडिया का है. लोग तमाम तरह की बातें बंद कमरों में करते हैं. यहां तक की सुरक्षित सोशल साइटों पर निजी मैसेजिंग में भी कुछ बातें साझा करते हैं. इसके अलावा लोग व्हाट्सऐस पर भी कई ग्रुप में जुड़े होतैं है और उनमें भी मैसेज भेजते रहते हैं. लेकिन ऐसे में यदि किसी ने निजी बातचीत पर कोई आपको ईशनिंदा कानून तोड़े जाने की धमकी दे तो आप क्या करेंगे.
व्हाट्सऐप ने फंसा दिया
अरूसा खान का बेटा व्हाट्सऐप पर चैट कर रहा था,लेकिन अचानक उसने खुद को "इंटरनेट विजिलैंट" के निशाने पर पाया. इन लोगों ने उस पर ऑनलाइन ईशनिंदा करने का आरोप लगाया. यह एक ऐसा अपराध जिसके तहत पाकिस्तान में मौत की सजा का प्रावधान है. यह 27 वर्षीय युवक पाकिस्तान की अदालतों में ऑनलाइन या व्हाट्सएप ग्रुपों में ईशनिंदा वाले बयान देने के आरोपी सैकड़ों युवकों में से एक है,जिसके लिए हाल के वर्षों में गिरफ्तारियां हुई हैं.
खास बात यह है पुलिस का कहना है कि ऐसे कई मामलों की सुनवाई वकीलों के नेतृत्व वाले निजी "विजिलैंट समूहों" द्वारा की जा रही है और स्वयंसेवकों द्वारा समर्थित हैं जो अपराधियों के लिए इंटरनेट को छान मारते हैं.
ईशनिंदा कानून बना ठगी का जरिया
डॉक्टरों,इंजीनियरों,वकीलों और एकाउंटेंट सहित युवा पाकिस्तानियों के परिवारों का कहना है कि गिरफ्तार होने से पहले उनके रिश्तेदारों को अजनबियों द्वारा ईशनिंदा सामग्री ऑनलाइन साझा करने के लिए ठगा भी गया था.
मीडिया में आई रिपोर्ट के अनुसार आरूसा ने बताया,"हमारी जिंदगी उलट-पुलट हो गई है." उन्होंने कहा कि उनके बेटे,जिसका नाम सुरक्षा कारणों से नहीं बताया गया है,को मैसेजिंग ऐप में ईशनिंदा सामग्री साझा करने के लिए ठगा गया है.
विजिलैंट ग्रुप बन गए जो यह काम कर रहे हैं
एक स्थानीय पुलिस रिपोर्ट से पता चलता है कि विजिलैंट ग्रुप पैसा कमाने के इरादे से भी ऐसा कर सकता है.ऐसा ही एक समूह पिछले तीन वर्षों में 27 लोगों को दोषी ठहराने के लिए जिम्मेदार था,जिन्हें आजीवन कारावास या मृत्युदंड की सजा सुनाई गई है.
ईशनिंदा मॉब लिंचिंग का कारण भी
मुस्लिम-बहुल पाकिस्तान में ईशनिंदा एक भड़काऊ आरोप है,जहां निराधार आरोप भी सार्वजनिक आक्रोश को भड़का सकते हैं और लिंचिंग का कारण बन सकते हैं.
कई अदालती सुनवाइयों में देखा गया है युवाओं पर निन्दापूर्ण ऑनलाइन सामग्री के लिए विजिलैंट समूहों और एफआईए (फेडरल इनवेस्टीगेशन एजेंसी) द्वारा मुकदमा चलाया जा रहा है.
इनमें आरूसा का बेटा भी शामिल है - जो नौकरी चाहने वालों के लिए एक व्हाट्सएप ग्रुप में शामिल हुआ था और एक महिला ने उससे संपर्क किया था.
उनकी मां ने कहा कि ग्रुप वालों ने उन्हें महिलाओं की एक तस्वीर भेजी थी,जिसके शरीर पर कुरान की आयतें छपी हुई थीं,उन्होंने आगे कहा कि संपर्ककर्ता ने "इसे भेजने से इनकार कर दिया और अहमद से इसे वापस भेजने के लिए कहा ताकि वह समझ सके कि वह किस बारे में बात कर रहा था".
बाद में उन्हें संघीय जांच एजेंसी (एफआईए) द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर मुकदमा चलाया गया. सबसे सक्रिय निजी जांच समूह ईशनिंदा पाकिस्तान पर कानूनी आयोग (एलसीबीपी) है,जो 300 से अधिक मामलों पर मुकदमा चला रहा हैं.
निजी जांच समूह के नेताओं में से एक शेराज़ अहमद फारूकी ने बताया कि एक दर्जन से अधिक स्वयंसेवक ऑनलाइन ईशनिंदा पर नज़र रखते हैं,उनका मानना है कि "अल्लाह ने उन्हें इस नेक काम के लिए चुना है."
फारूकी का कहना है कि हम किसी का सिर नहीं काट रहे हैं; हम कानूनी रास्ता अपना रहे हैं. अदालत में उनके समूह द्वारा दायर 15 ईशनिंदा मामलों की सुनवाई हुई है.
कानून के तहत मौत की सजा का प्रावधान
बता दें कि मामले अदालतों में वर्षों तक खिंच सकते हैं,हालांकि सुप्रीम कोर्ट में अपील पर मौत की सजा को अक्सर आजीवन कारावास में बदल दिया जाता है और पाकिस्तान ने कभी भी ईशनिंदा के लिए किसी को फांसी नहीं दी है. दर्जनों लंबित मामलों को शीघ्र निपटाने के लिए सितंबर में एक विशेष अदालत का गठन किया गया था.