न खेतों में सिंचाई, न अवाम को पानी.. सिंधु जल संधि नकार भारत ने कैसे दबाई पाकिस्तान की कमजोर नस? एक्सपर्ट से समझिए

भारत के पीएम नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ

कश्मीर के पहलगाम में हुए कायराना आतंकी हमले (Pahalgam Kashmir Terrorist Attack) के बाद भारत एक्टिव मोड में है. भारत ने बुधवार,23 अप्रैल को घोषणा करके पाकिस्तान के साथ 1960 की सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से स्थगित कर दिया है. इसे वापस से तबतक बहाल नहीं किया जाएगा,जब तक कि इस्लामाबाद की सरकार विश्वसनीय और अपरिवर्तनीय रूप से सीमा पार आतंकवाद के लिए अपना समर्थन बंद नहीं कर देती.

यह कदम मंगलवार को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पर्यटकों समेत 26 लोगों की हत्या के बाद उठाया गया है. सवाल है कि इस कदम का पाकिस्तान पर क्या असर हो सकता है?

पहले सिंधु नदी की जियोग्राफी समझिए

आजादी के समय पाकिस्तान और भारत के बीच सीमा रेखा सिंधु बेसिन के ठीक बीच खींची गई थी. पाकिस्तान को निचली नदी तट मिला और भारत को ऊपरी नदी तट.

दो महत्वपूर्ण सिंचाई कार्य,एक रावी नदी पर माधोपुर में और दूसरा सतलज नदी पर फिरोजपुर में,जिस पर पंजाब (पाकिस्तान) में सिंचाई नहर की आपूर्ति पूरी तरह से निर्भर थी,भारतीय क्षेत्र में आई. इस प्रकार मौजूदा सुविधाओं से सिंचाई के पानी के उपयोग को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद पैदा हो गया. विवाद 1960 में सुलझा जब सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर हुआ.

सिंधु नदी के पूरे तंत्र में मुख्य नदी सिंधु है. इसके बाएं किनारे की पांच सहायक नदियां रावी,ब्यास,सतलुज,झेलम और चिनाब शामिल हैं. जबकि दाहिने किनारे की सहायक नदी,काबुल,भारत से होकर नहीं बहती है.रावी,ब्यास और सतलुज को एक साथ पूर्वी नदियां कहा जाता है जबकि चिनाब,झेलम और सिंधु मुख्य को पश्चिमी नदियां कहा जाता है. इसका पानी भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए महत्वपूर्ण है.

भारत और पाकिस्तान के बीच क्या समझौता हुआ था?

संधि के अनुसार,लगभग 33 मिलियन एकड़ फीट (MAF) के औसत वार्षिक प्रवाह के साथ पूर्वी नदियों - सतलुज,ब्यास और रावी का सारा पानी भारत को मिला. जबकि लगभग 135 MAF के औसत वार्षिक प्रवाह के साथ पश्चिमी नदियों - सिंधु,झेलम और चिनाब का पानी बड़े पैमाने पर पाकिस्तान को दिया जाता है.

भारत को घरेलू उपयोग,गैर-उपभोग्य उपयोग,कृषि और जल-विद्युत ऊर्जा उत्पादन के लिए पश्चिमी नदियों के पानी का उपयोग करने की अनुमति है. हालांकि पश्चिमी नदियों से जलविद्युत उत्पन्न करने का अधिकार शर्तों के अधीन है. संरचना की डिजाइन और उसके संचालन पर शर्तों को मानना होता है. समझौते में कहा गया है कि भारत पश्चिमी नदियों पर 3.6 MAF तक भंडारण (स्टोरेज) भी बना सकता है.


भारत के लिए क्या विकल्प?

प्रदीप कुमार सक्सेना ने छह सालों से अधिक समय तक भारत के सिंधु जल आयुक्त के रूप में काम किया और आईडब्ल्यूटी से संबंधित कार्यों से जुड़े रहे हैं. उन्होंने कहा कि ऊपरी तटवर्ती देश होने की वजह से भारत के पास कई विकल्प हैं.प्रदीप सक्सेना ने न्यूज एजेंसी पीटीआई को बताया,"यदि सरकार फैसला लेती है तो यह संधि को रद्द करने की दिशा में पहला कदम हो सकता है." उन्होंने कहा,"भले संधि में इसको रद्द करने के लिए कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है,लेकिन संधियों के कानून पर वियना कन्वेंशन का आर्टिकल 62 पर्याप्त रास्ता बनाता है. इसके तहत संधि के समापन के समय मौजूद परिस्थितियों के संबंध में हुए मूलभूत परिवर्तन को देखते हुए संधि को अस्वीकार किया जा सकता है." पिछले साल,भारत ने संधि की "समीक्षा और संशोधन" की मांग करते हुए पाकिस्तान को एक औपचारिक नोटिस भेजा था.

पाकिस्तान पर क्या असर होगा?

भारत द्वारा उठाए जा सकने वाले कदमों के बारे में बताते हुए,प्रदीप सक्सेना ने कहा कि संधि पर रोक लगने की स्थिति में,भारत जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा जलाशय (रिजर्वायर) और पश्चिमी नदियों पर अन्य परियोजनाओं के "जलाशय प्रवाह" पर प्रतिबंधों का पालन करने के लिए बाध्य नहीं है. सिंधु जल संधि फिलहाल इस पर रोक लगाती है.फ्लशिंग से भारत को अपने जलाशय से गाद निकालने में मदद मिल सकती है लेकिन पूरे जलाशय को भरने में कई दिन लग सकते हैं. संधि के तहत,फ्लशिंग के बाद जलाशय को भरना अगस्त में किया जाना है - चरम मानसून अवधि में- लेकिन समझौते के स्थगित होने के साथ,यह कभी भी किया जा सकता है. पाकिस्तान में बुआई का मौसम शुरू होने पर ऐसा करना हानिकारक हो सकता है,खासकर तब जब पाकिस्तान में पंजाब का एक बड़ा हिस्सा सिंचाई के लिए सिंधु और उसकी सहायक नदियों पर निर्भर करता है.इस संधि के अनुसार,सिंधु और उसकी सहायक नदियों पर बांध जैसी संरचनाओं के निर्माण पर प्रतिबंध हैं. अतीत में,पाकिस्तान ने ऐसी संरचनाओं पर डिजाइन के आधार पर आपत्ति जताई है लेकिन भविष्य में भारत के लिए इन चिंताओं को ध्यान में रखना अनिवार्य नहीं होगा.दरअसल अतीत में भारत के लगभग हर प्रोजेक्ट पर पाकिस्तान की ओर से आपत्ति जताई गई है. सलाल,बगलिहार,उरी,चुटक,निमू बाजगो,किशनगंगा,पाकल दुल,मियार,लोअर कलनई और रतले उल्लेखनीय हैं.2019 में पुलवामा आतंकी हमले के बाद सरकार ने लद्दाख में आठ और जलविद्युत परियोजनाओं को मंजूरी दी. लेकिन संधि स्थगित होने की स्थिति में पाकिस्तान की आपत्तियां अब नई परियोजनाओं पर लागू नहीं हो सकतीं.जलाशयों को भरने और संचालित करने के तरीके पर भी परिचालन प्रतिबंध हैं. संधि स्थगित होने से,ये अब लागू नहीं हैं. प्रदीप सक्सेना ने कहा कि भारत नदियों पर बाढ़ के आंकड़े पाकिस्तान के साथ शेयर करना बंद कर सकता है. यह पाकिस्तान के लिए भी हानिकारक साबित हो सकता है,खासकर मानसून के दौरान जब नदियां उफान पर होती हैं.उन्होंने कहा कि भारत में अब पश्चिमी नदियों,विशेषकर झेलम पर भंडारण/ स्टोरेज पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा और भारत घाटी में बाढ़ को कम करने के लिए कई बाढ़ नियंत्रण उपाय कर सकता है. संधि के तहत अनिवार्य पाकिस्तान की ओर से भारत की यात्राएं अब बंद हो सकती हैं.यह भी पढ़ें:यह तो बस ट्रेलर है... आतंक की फैक्टरी पाक पर 5 बड़े प्रहार,पहलगाम का होगा पूरा हिसाब