‘खलनायक’ आसिम मुनीर की कहानी- पाकिस्तान का वो जिहादी आर्मी जनरल जो किसी का सगा नहीं हुआ

Pakistan's Army Chief General Asim Munir: पाकिस्तान के लिए नासूर कैसे बनेगा जनरल आसिम मुनीर

ये शख्स भारत के खिलाफ जहर उगलता है


ये शख्स भारत के खिलाफ साजिश रचता है


पुलवामा से पहलगाम तक जो खूनी खेल चला


उससे रंगे हैं इस शख्स के हाथ

यहां हम बात कर रहे हैं कि पाकिस्तान के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ जनरल आसिम मुनीर (Pakistan's Army Chief General Asim Munir) की. इन दिनों वो एक घबराए हुए,परेशान शख्स होंगे. जब ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor)चल रहा था,तब लोग पूछ रहे थे कि कहां गायब हैं जनरल. खबर यहां तक चल पड़ी कि वो बंकरों में छुपे बैठे हैं. इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती,लेकिन इसमें शक नहीं कि भारत-पाक रिश्तों का जो मौजूदा हाल है,उसके सबसे बड़े खलनायक वही हैं.

पाकिस्तान पर मुनीर की पकड़

जनरल आसिम मुनीर महज फौज के प्रमुख हैं. लेकिन पाकिस्तान की समूची सियासत में फिलहाल उनकी हैसियत कितनी बड़ी है,और 22 मई को पहलगाम पर हुए हमले में उनकी कितनी बड़ी भूमिका रही होगी- इसके कई प्रमाण सुलभ हो चुके हैं. ताजा प्रमाण ये है कि जब पाकिस्तान ने अमेरिका से संघर्ष विराम कराने की अपील की तो अमेरिकी विदेश मंत्री ने पाकिस्तान में जिन हस्तियों से बात की,उनमें जनरल आसिम मुनीर भी एक थे. क्या इस बात की कल्पना की जा सकती है कि कोई विदेशी राजनेता कोई युद्ध रोकने या आगे बढ़ाने के लिए भारत के किसी जनरल से बात करे? दरअसल इसी से पता चलता है कि मुनीर इन दिनों पाकिस्तान की राजनीति में कितनी बड़ी हैसियत वाले शख्स हो चुके हैं.

दिलचस्प ये है कि जनरल आसिम मुनीर बहुत धार्मिक आदमी माने जाते हैं. उनको जानने वाले बताते हैं वो हाफिज हैं- हाफिज यानी वो शख्स जिसे कुरान पूरी याद हो. यह भी कहते हैं कि कभी कुरान के कुछ हिस्से भूलने पर उन्होंने फिर मदरसे जाकर कुरान पढ़ी. लेकिन कुरान से उन्होंने क्या सीखा? ये जरूरी नहीं कि रट लिया तो उसके असली मायने भी ठीक से समझ में आ गए हो. आसिम मुनीर को देखकर भी कुछ ऐसा ही लगता है. वरना वो वो इस कदर जहरीली जुबान नहीं बोलते,जैसी वो बोल रहे हैं.जनरल आसिम मुनीर को लोग जेहादी जनरल बोलते हैं. और उनका ये जेहाद जैसे भारत के खिलाफ चलता रहा है. जब वो सामने आते हैं तो भारत के खिलाफ जहर उगलते हैं. बीते ही महीने अप्रैल में इस्लामाबाद में ओवरसीज पाकिस्तानियों के सम्मेलन में उन्होंने लगातार ऐसी बातें कहीं जिनको सुनते हुए उनकी समझ पर किसी को भी तरस आ सकता था. उन्होंने कहा कि हिंदू और मुसलमान एक-दूसरे से बिल्कुल अलग होते हैं. मुनीर ने ये बात नासमझी में कही हो,ऐसा नहीं है. वो पूरी चालाकी से भारत और पाकिस्तान की उस साझा संस्कृति पर चोट करना चाहते हैं जिससे पाकिस्तान के पूरे वजूद पर सवाल उठ जाते हैं. भारत और पाकिस्तान के बीच तहजीब का,संगीत का,खानपान का,पोशाक का,और जुबान का जो साझा है,उसे वो नकारना चाहते हैं. उनको एक दक्षिण एशियाई उदार पाकिस्तान नहीं,पश्चिम एशियाई पहचान वाला कट्टर पाकिस्तान चाहिए. इसलिए वो द्वि-राष्ट्रवाद के सिद्धांत का समर्थन करते हैं. मुनीर यहीं नहीं रुके. उन्होंने कश्मीर का मसला भी उठाया जिसको लेकर बीते कई साल से पाकिस्तान बयान देता रहा है. उन्होंने कहा कि कश्मीर पाकिस्तान के गले की नस है उसे काटा नहीं जा सकता.

दरअसल इस कार्यक्रम में जनरल मुनीर का भाषण किसी सेना प्रमुख का नहीं,बल्कि किसी नेता का लग रहा था. हैरानी की बात ये है कि उनके सामने दर्शक दीर्घा में शहबाज शरीफ सहित कई नेता बैठे हुए थे. लोगों को लग रहा था कि ये भाषण एक फौजी जनरल के भीतर पल रही इच्छाओं का भाषण है.

अंदेशा बेमानी नहीं है कि 22 अप्रैल को पहलगाम में जो कुछ भी हुआ,उसकी भूमिका ऐसे ही भाषणों से बनने लगी थी. जनरल आसिम मुनीर इन हमलों के लिए बस नैतिक तौर पर दोषी नहीं हैं,बल्कि विशुद्ध अमल के स्तर पर इसमें उनके लोगों की भूमिका रही हो सकती है. वैसे ये पहली बार नहीं है जब जनरल ने भारत को चोट पहुंचाने की कोशिश की है.

भारत के खिलाफ साजिशें करता रहा है मुनीर

पहलगाम अब हुआ है,पांच साल पहले पुुलवामा हुआ था. पुलवामा का भी जिम्मेदार यही शख्स है. तब जनरल मुनीर सेना के प्रमुख नहीं हुआ करते थे,वो पाकिस्तान की बदनाम खुफिया एजेंसी आईएसआई के चीफ थे. ये 14 फरवरी,2019 का दिन था,जब जम्मू-श्रीनगर हाइवे पर पुलवामा के पास सीआरपीएफ के काफिले पर फिदाईन हमलावर ने विस्फोटकों से भरी कार से हमला किया. ये भयावह हमला था जिसमें सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए. ये भारत के सबसे भयावह आतंकी हमलों में एक था. उस जैश ने इसकी जिम्मेदारी ली,जिसका मुख्यालय पिछले दिनों भारतीय सेना ने उड़ा दिया.


लेकिन पुलवामा हमले की साजिश जिसने रची थी,वह आइएसआई चीफ आसिम मुनीर ही था.

हालांकि तब तक पाकिस्तान को अंदाजा नहीं था कि भारत पुलवामा का जवाब बालाकोट में घुस कर देगा. इसके बाद पाकिस्तान ने भी जवाबी कार्रवाई की कोशिश की. माना जाता है कि इस कोशिश के पीछे भी आसिम मुनीर के नेतृत्व में बनी कमेटी की भूमिका थी जिसने पाकिस्तान के सैन्य-नागरिक नेतृत्व को भारतीय प्रहार का जवाब देने के लिए मजबूर किया.


दिलचस्प ये है कि जनरल मुनीर उनके भी नहीं हुए,जिन्होंने उनका साथ दिया.

जनरल मुनीर किसी का नहीं

मुनीर को 25 अक्टूबर 2018 को आइएसआई का महानिदेशक बनाया गया. तब इमरान खान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे. पुलवामा और उसके बाद की वारदात में आसिम मुनीर ने काफी साजिशाना और कुटिल भूमिका निभाई थी. लेकिन मुनीर बहुत दिन आइएसआई के मुखिया नहीं रह सके. वो पाकिस्तान के इतिहास में वो सबसे कम समय तक आइएसआई चीफ रहने वाले शख्स रहे. माना जाता है कि उन्हें इमरान के दबाव में कमर जावेद बाजवा ने हटाया जो सेना प्रमुख थे. मुनीर का दावा है कि उन्होंने इमरान और उनकी पत्नी बुशरा के भ्रष्टाचार को उजागर किया था जिसकी उन्हें सजा भुगतनी पड़ी. हालांकि इमरान इसे पूरी तरह झूठा आरोप बताते हैं और कहते हैं कि न मुनीर ने उनके खिलाफ कोई सबूत दिखाए थे और न ही इमरान ने उन्हें हटाने को कहा था.

मुनीर की असली किस्मत हालांकि इसके बाद खुली. दिलचस्प ये है कि वो रिटायर होने का मन बना चुके थे,लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था. पाकिस्तान की उलटफेर वाली राजनीति में उन्हें जल्द ही इमरान से बदला लेने का मौका भी मिला. आसिम मुनीर को 27 नवंबर,2022 को रिटायर होना था. उन्होंने तो रिटायरमेंट की चिट्ठी भी दे दी थी लेकिन इसे रक्षा मंत्रालय ने खारिज कर दिया था. रिटायरमेंट से सिर्फ तीन दिन पहले उन्हें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बना दिया गया. ये 24 नवंबर 2022 की तारीख थी.

अगर तीन दिन की देर हो गई होती तो मुनीर इतिहास के कूड़ेदान में होते. बस पुलवामा के खलनायक की तरह याद किए जाते. लेकिन तब तक पाकिस्तान की राजनीति में कुछ ऐसा बदलाव आ चुका था कि वे नई सरकार की पसंद बन गए. अप्रैल 2022 में पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया. इमरान की सरकार गिर गई और पीएमएल नवाज के नेता के रूप में शहबाज शरीफ ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. शहबाज ने नवाज शरीफ से बातचीत कर आसिम मुनीर को चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बनाने की सिफारिश की. खास बात ये है कि उन दिनों राष्ट्रपति रहे आरिफ अल्वी ने बिल्कुल उसी दिन ये सिफारिश मान भी ली. यही नहीं,पहले उन्हें तीन साल के लिए सेना प्रमुख बनाया गया था. मुनीर पर शहबाज सरकार की मेहरबानी आगे भी जारी रही.

नवंबर 2024 में उनका कार्यकाल 3 साल से बढ़ा कर 5 साल कर दिया गयाइसके लिए क़ानून में संशोधन भी करना पड़ासीनेट ने महज 16 मिनट में बिना बहस के ये संशोधन पास कर दियाइमरान की पार्टी पीटीआई ने इसका विरोध किया. कहा कि ये विपक्ष की आवाज कुचलने की साजिश है.लेकिन इसी के साथ ये साफ हो गया कि मुनीर नवंबर 2027 तक सेना प्रमुख बने रहेंगे.इन सबके बीच मुनीर ने शहबाज शरीफ का एहसान चुकाते हुए इमरान और उनकी पार्टी को लगभग खत्म करने की ठान ली. इमरान भ्रष्टाचार के आरोप में जेल भेज दिए गए और उनकी पार्टी के ज्यादातर नेताओं को डराया-धमकाया गया. इस दौरान इमरान की लोकप्रियता लगातार बढ़ती रही. ये साफ दिखने लगा कि 2024 के चुनावों में उनकी पार्टी चुनाव जीत रही है. लेकिन पीटीआई की मान्यता खत्म कर दी गई,उनका चुनाव चिह्न छीन लिया गया. इसके बावजूद इमरान समर्थक निर्दलीय उम्मीदवारों के तौर पर चुनाव लड़े और सबसे बड़े समूह के तौर पर उभरे. लेकिन मुनीर के नेतृत्व में सेना के दखल ने चुनावी नतीजे बदल डाले.

अब ये खेल भी बदल रहा

दिलचस्प ये है कि अब ये खेल भी बदल रहा है. ऐसा लग रहा है जैसे मुनीर बस सेना प्रमुख रह कर संतुष्ट नहीं हैं. उन्हें पाकिस्तान का इतिहास प्रेरित कर रहा होगा जिसमें कई सेना प्रमुखों ने राष्ट्रपति पद संभाला. उनके तेवर फिलहाल ऐसे हैं कि वो राजनीतिक नेतृत्व से बड़े दिखते हैं. दरअसल ये पाकिस्तान की जम्हूरियत के सामने नई चुनौती है. 2024 के चुनावों में जिस तरह का खेल चला,उससे मौजूदा हुकूमत लोगों का भरोसा खो बैठी है. ऐसे में ये खयाल मुमकिन है कि आसिम मुनीर सत्ता की चाबी अपने हाथ में लेना चाहें.

तो आसिम मुनीर ऐसे खलनायक हैं जो किसी के नहीं हैं. पहलगाम के हमले के पीछे एक मकसद ये भी रहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच दूरी और तनाव बढ़े. ये तनाव बढ़ता है तो लोग सेना की ओर देखते हैं. लेकिन पहलगाम के बाद नौ आतंकी ठिकानों पर भारतीय सेना की कार्रवाई ने माहौल बदल दिया. पाकिस्तान ने दम दिखाने की कोशिश की,तो फिर जवाबी हमलों ने उसकी बची-खुची हैसियत छीन ली. तो मुनीर भारत के खलनायक तो हैं ही,पाकिस्तान सरकार के लिए भी खलनायक हो सकते हैं और देर-सबेर पाक सेना के लिए भी. आखिर उनकी वजह से सात लाख पेशेवरों से भरी और नाभिकीय हथियारों से लैस एक सेना को पुराना ये मजाक सुनना पड़ रहा है कि पाकिस्तानी सेना कोई चुनाव हारती नहीं और कोई जंग जीतती नहीं.

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